Monday, May 16, 2011

उसे आज झूठ कहते है !

हर शाम तो बस ,एक बुझती हुई चराग है ,
जो कल भी आती थी,जो आज भी आती है 
बस वो कल तक मुझसे,कुछ कहती थी 
आज बिना पूछे चली जाती है !

पर आज भी, हम तुझसे ,कुछ कहते है 
जो कल तक भी कुछ कहते थे !
फर्क बस इतना था ,
कल तक जिसे सच कहते थे ,
उसे आज झूठ कहते है !

जो कभी किसी का ,जितना था !

कल एक वक़्त था, जो बहता हुआ समंदर था 
आज एक वक़्त है, जो सुखा हुआ तालाब है !
वो कल में भी अपना था ,
वो आज में भी अपना है !
मै क्या कहूं , कैसे कहूं 
फिर भी कहता हूँ !
वो बस ,उतना है , 
जो कभी किसी का, जितना था !
मै आज भी ,उतना हूँ ,
जो कभी किसी का ,जितना था !

Friday, May 13, 2011

भागता हूँ ,इस जिन्दगी से
पर अब तक भाग नहीं पाया !
हर तरफ पहरा है ,उन यादो का
जिनको जोड़ता था कभी ,अब तक जोड़ नहीं पाया !
न जाने बेतल्ख सा, वक़्त था वो,
जो उसने हमें, शायर बनाया !
हम तो पहुच गए थे, उस आशियाने तक काशिद ,
जिस आशियाने को कोई और था बनाया !!

कैद खाने में !

कल शाम को जब मिले थे ,तो बस हम थे
और हमारी यादों का घेरा था ,
न था कोई वह पर ,न थे हम भी वहां पर
बस एक डेरे पर बैठा कबूतर का दो जोड़ा था !

जब -जब तुमको अपने करीब पाया , तब -तब लगा ,
कितना गहरा होता है मोहब्बत का साया ,
कभी हम थे दीवाने ,तुम्हारी मिल्कियत में पहुचने के ,
आज कैद है ,तुम्हारे दिल के कैद खाने में !!

फिर मान जाओगे !

जब से मुह मोड़ा हैं, तुम ने हाल मेरा बेहाल हैं ,
ख्याल नहीं मुझको खुद का , हर वक़्त बस तेरा ख्याल हैं
किस्म पूछी हैं तूने मेरे प्यार कि ,
ऐ महबूब बता कैसा बेतुका सवाल हैं !

कितना गहरा हैं ,प्यार मेरे दिल में तेरे वास्ते
एक बार झांकोगे जान जाओगे ,
अपने प्यार कि गहराई तुम्हे बता देंगे हम
एक बार यार जब तुम फिर मान जाओगे !!

दास्ताँ हमेशा अमर रहेगी

पल-पल गुजरता हुआ, कल ,
इन यादो का, हमारा -तुम्हारा, मीठा सफ़र !
हम कभी दूर से देख कर, अपनी निगाहों में सकूं भर लेते थे ,
आज इतना करीब होकर भी, न जाने क्यूँ इन आँखों को अश्क से भर लेते हैं !!

हमारी -तुम्हारी मोहब्बत कि दास्ताँ ,न कभी हमारी कम थी ,न कभी तुम्हारी ,
पर न जाने क्यूँ एक ख्याल सा आता है ,तुम से दूर होने का एक डर सा सताता हैं !
फिर भी हमें फख्र हैं हमारी -तुम्हारी मोहब्बत पे ,
क्योकि इसकी इबारत मौला ने, खुद लिखी हैं, अपनी कलम से !!
ये सच हैं बिट्टू, जो कल थी वो आज और वो मरते दम तक रहेगी ,
हमारी -तुम्हारी मोहब्बत कि दास्ताँ हमेशा अमर रहेगी !!!
कैसे लिखूं जिन्दगी कि नयी दास्ताँ ,
जब से बसी है, इस दिल में तेरे मोहब्बत कि दर्दे -बयाँ ,
तू पास होकर भी मुझसे दूर जाती हो ,
मै फिर भी दूर होकर भी,तेरे पास आ ता हूँ !



नहीं खबर थी ,मेरे आने कि ,तुझे ऐ काशिद
गर तू खुद चला गया होता उन तक ,
तो शायद इंतजार न करता अब तक.!
रात बीत गयी थी ,पर बात अभी, पूरी बाकी थी ,
मै कुछ कह नहीं सकता, क्योकि उसका साथ, अभी बाकी थी ,
जब मै मिला था तब न जाने किस पशमोपेश में थी ,
दूर जाने लगा था तो वो बिलकुल होश में थी ,
क्या मिला, मुझको ,जो मैंने पाया था ,
वो मेरी नज्म कि ,जुबान बन गयी थी ,जब से उसको खोया था !
ऐ खुदा तू मुझको बता दे ,तू क्या लाया हैं मेरे लिए ,
मेरे पास तो हर दर्द कि दवा थी ,
लेकिन रूहान गी का साया छाया हुआ हैं मेरे लिए !
मै मतल करता हूँ ,तुझ से एक बार फिर से ,
तू दूर से देख कर मुस्कुराया करता हैं , क्यूँ मेरे लिए !



बहते हुए झरनो के बीच ,मै बैठा था, सहमा सा
कुछ मन में ख्याल लिए ,कुछ पल से ठहरा हुआ सा
बस हर पल गुनगुनाता था ,मन में एक छोटा सा ख्वाब लिए
फिर मै अपने सपनो को सजोता हुआ ,चल निकलता था अपनी मंजिल पाने के लिए !

एक कलाम पढ लेते...

आज मै एक फ़रियाद लेकर आया था ,
तकदीर में लिखा था ,बेजुबान बनकर आया था ,
ऐ काशिद हम भी अपनी लब्ज को नाशाद कर देते,
गर तू भेज दे कर्बला ,तेरे दर पर बैठकर एक कलाम पढ लेते !!



चाँद कि आगोश खुद को कोई कल छिपाकर बैठा था,
न जाने क्यु नजरे चुराकर मुझ से कोई कुछ कहता था !
मेरे मोहब्बत का पैगाम तो उनको बहुत पहले पहुच गयी थी ,
क्योकि वह खुद उस चादनी रात में आसमा को बिछाकर लेता था !!
तेरे दर्दे दिल में ,मेरे इश्क कि सजा क्या हैं ,
मेरे चाहत की बुलंदी ऊँची हैं ,पर इन कलामो में मेरे दस्ताने -मोहब्बत कि खता क्या हैं ,
अब तो मै मुफलिसी कि जिन्दगी जीता हूँ ,
क्योकि इन बहारो -चमन में तेरे इश्क का नाशाद बहुत मीठा हैं.!



इजहारे मोहब्बत , तो साकी बन गयी थी ,
मै प्याला बन गया था ,तू शबाब बन गयी थी ,
फ़ैल गयी थी ,इस जहाँ में तेरे मेरे इश्क की दास्ता,
लगता हैं आज फिर से ,किसी को किसी से सच्ची मोहब्बत हो गयी थी !

अपनी मंजिल गयी होती !

हमें तनहा हियो में ,चश्मे -दीदे कि मंजर मिलती हैं ,
हर काफिर को उसके ईमान कि सजा मिलती हैं ,
न जाने कब से खड़ा था, इन चीटियों का कारवां ,
गर चल दिए होते, तो इनको भी!
 अपनी मंजिल गयी होती !

Monday, April 18, 2011

तेरे नाम का पत्थर !

शामें मोहब्बत, की पैगाम लेकर आया था ,
हर वली पर ,बस तेरे मौला का नाम लिख कर आया था !
जो हुआ न था ,उससे कभी , वो फिर भी ,अपनी खुदी का कलाम  लिख कर आया था ,
और उस  हसीने  शाम  को , तेरे नाम करने  आया था !!

हर पल , हर खयालो  ,में पहरा रहता था, तुम्हारी मोहब्बत का
न जाने  कौन  फिर से  , तेरे मयस्सर  का  नाम लेकर आया था ,
भुला  दिया  हैं  उनको , जो, तेरा  नाम लेकर जीते  हैं 
आज  तेरे नाम का पत्थर , दिल  से  उछाल  कर आया था !!
                                                                      

Sunday, April 17, 2011

चाँद बना दिया !

वक़्त की इनायत ने मुझको पागल बना दिया ,
मैं ढुंढता रहा जिनको बुझता चिराग लिए !
उसने खुद ही मुझको रोशनी का सामान बना दिया ,
ख़ाक हो गए अँधेरे ,उनके ख्वाहिशो की गर्दिश में
---वो आज मुझको फिर से उजाली रात का चाँद बना दिया -२!!

कसूर मेरा कितना हैं ,तेरा कितना हैं !

इस सुबह में, मेरे हिस्से का सवेरा कितना हैं
चराग बुझा कर देख लो, अँधेरा कितना हैं
तेरे नाम पर, दावे बहुत लोग करते हैं,
दिल कहता हैं , आजमाकर देख लो तू मेरा कितना हैं !

उस डेरे से उड़ा था ,इस डेरे पर हैं ,उस डेरे पर बैठेगा
इस परिंदे का न जाने कितना डेरा हैं ,
भागता हूँ रातो -दिन ,पर अब तक, भाग नहीं पाया ,
कोई बतलादे उनकी यादो का घेरा कितना हैं !!

गुनाह हुआ हैं बिट्टू मोहब्बत में ,तुझसे भी ,मुझसे भी
न जाने इस गुनाह में ,कसूर मेरा कितना हैं ,तेरा कितना हैं !!

Saturday, April 16, 2011

, मेरी इनायत से !

ये उठता धुँआ हैं , जो थमता नहीं चलता जाता हैं 
दूर जाकर हमसे, आसमा की आगोश में छिप कर बैठ जाता हैं !
वो न जाने क्यूं छिपकर निहारता खुद में हमको ,
जब भी कोई वहां  से गुजर कर आता हैं !

अब तो बस वफाये नज्र को ,ये आँखे तलाशती हैं 
वो कही पे भी हो ,बस उनको सपनो में पाती हैं !
गर दूर हो भी गयी, मेरी इनायत से 
तो रूह भी मेरी तुझे तलाशती हैं !! 
                                    --- बिट्टू 

Tuesday, April 12, 2011

इन बिखरती छावं में !

इन बिखरती छावं में आज 
फिर से कोई खुद को बिछाकर लेटा हैं !
डूब गया हैं खवाबो  के समंदर में 
बस वो जाग -२ कर सोता हैं !!

जो कल तक बाते करता था 
वो न जाने क्यु खुद से बाते करता हैं !
लगता हैं ,रह गयी ख्वाहिसों के समंदर में आखिरी लब्ज 
न जाने कब तक उनके आगोश खुद को छिपा कर बैठा हैं !!

रूमानियत की नज्र करते.!

कौन हैं "वो"जो मुझको हर खवाब में  नजर आता हैं
जो पास होकर भी  मेरी तन्हयियो को छूकर चला जाता हैं !
हम आज जिन्दा होकर भी तेरी रुखसत की परवाह नहीं करते 
गर अपनी कब्र में भी होते अकीदा ,तो भी हम तेरे सब्ज की रूमानियत की नज्र करते.!! 

अजीबो गरीब हैं तेरे चाहत की दास्ताँ 
जब हम करीब होते तो आप दूर होते हो !
मेरी ""छोटी" की हर रुखसत को माफ़ करना मेरे !!मौला
वो हमसे  दूर होते भी हो, क्यों न " पर उनकी तस्वीर को आँखों में उतार  कर जी लेते हैं.!!

Monday, April 11, 2011

किसी गैरत को !


इस मंजिल तक पहुचने का एक ही रास्ता हैं 
और जिस तक जाना हैं उससे पहले का कोई वास्ता हैं, 
आज रहबर की रहनुमाई मुझ पर महँगी पड़ेगी 
क्योकि आज फिर से हर जर्रे पर उनके नाम का कांटा बिछा हैं!
  
अगर चुभ गया होता किसी गैरत को 
तो वो भी अब तक उस दर्द का प्यासा हो चूका होता ,
ऐ मेरे मौला ! दुआ करना उनके खुदा से 
की आज उस दर्द का असर भी  मुझ तक पहुँच गया होता !!

Friday, April 8, 2011

ऐ मतवाले...

तू निकल पड़ आज  ऐ मतवाले
हो मशाल हाथ में 
जुबां पे हो बस इंकलाबी नारे ,
हर गली और कूचे 
हर दरो दीवार 
आज फिर से दरकने लगे,
हर तरफ बस गुंजायमान 
वीर शहीदो के आवाज़े ,
तू सिंचित कर दे अपने लहू से 
इस मात्रभूमि की मर्यादा को 
जन -जन की आवाज़ बनकर 
तू पी जा सारे विष के प्याले ,
तू पग पग पर अपने प्राण बिछा दे 
अपने जीवन का अर्पित पुष्प चड़ा दे ,
तू निकल पड़ आज ऐ मतवाले -२ !!
इन्कलाब जिन्दा बाद ...........

Wednesday, April 6, 2011


इस चेहरों की दुनिया में 
यूँ  तो कई चेहरे हैं 
पर एक तुम्हरा चेहरा  हैं  
जिसके आगे हर चेहरे का चेहरा उतरा हैं !

जब से मेरे चेहरे ने तेरे चेहरे को देखा हैं 
मेरा चेहरा तेरे चेहरे पर बिखरा बिखरा हैं
तेरा चेहरा करोडो  में एक चेहरा हैं 
जिसको तलाश रहा मेरा चेहरा हैं 
अब बस वो तेरा चेहरा ही चेहरा हैं !! 

Thursday, March 24, 2011

इन फलक में....



आज अपनी रंगत  खो चुका हैं ,आसमा 
आज जमींदोश  हो गया  हैं  सारा जहां
महकती इन घटाओं  अब न तो वो नशा  हैं 
बहकती डालियों  में अब न तो वो खुमारी !

अब तो सो गया हैं , सारा जहां 
बस अपनी खुद्दारी में ,
बिखर गयी  हैं दुनिया  उनकी 
टूट गए  हैं उनके सपने 
चुभ रही हैं जीवन की हर एक डगर 
लग रहा मैं टूटकर बिखर गया हूँ इधर -उधर !!

आज फिर में न जाने क्या बैठा  था,पिरोने उसे 
जो फिर कभी नहीं हो सकता था ,हमसफ़र !!!

लगी हैं आग इस कदर ,इन फलक में 
जो आज फिर  बुझ -२ कर भी जल रही हैं 
लग रहा आज  हो जाएगा  सब  खाके -सुपुर्द 
क्योकि बस बचा हैं , मेरे जाने में, एक छोटा सा पहर !!!!

मै एक बंजारन हूँ....





मैं एक बंजारन हूँ 
मेरा कोई ठिकाना नहीं 
मैं बस ढूंडती  
अपने जीवन के रंग 
मैं बदलती हूँ 
वक़्त के संग अपना रंग 
मैं ढूंडती हूँ अपनी सहेलियो 
जिनसे संवारता हैं 
मेरे गृहस्थ  का रंग !

मैं आज न जाने क्यों उदास थी 
मेरी बहने आज मेरे खिलाफ थी 
मैं उनसे  कहती थी 
छोड़ दो अपनी प्यारी सहेलियों  को 
न जाने कुछ मुझे कुछ खतरे की आस थी !!

मैं भटक गयी थी ,अपने धर्म पथ 
क्योकि जीवन की सच्चाई मेरे पास थी 
टूट कर बिखर गए थे सारे सपने 
क्योकि आज जिन्दा होकर भी 
मैं मौत के पास थी -२!!!

हर एक बात ...



आज में फिर निकला था 
उनको छोड़कर 
आज फिर, उन दो आँखों में 
फिर वही रंग था !
एक तो ख़ुशी का और
 दूसरा गम, का था !!
मेरे हाथ,फिर आज 
उनकी चरणों, की धूल 
अपने माथे पर लगाये थे !
और वो  आज फिर
अपनी भीगी पलके लिए, मुस्कुराये थे 
कदम बढ  गए, आज फिर
उनको पाने में
जिसे मैंने वर्षो से सजाये थे !!


आज फिर उनकी आँखे निहारती रही 
मेरे ओझल हो जाने के बाद 
फिर भी वो खड़ी रही 
मुझ से दूर हो जाने के बाद !
मै  बार -२ मुड़कर देखता रहा 
और बस हर पल सोचता रहा 
 बताई उनकी हर एक  बात 
कुछ पल बाद ऐसा लगा
 जैसे छूट गया हो 
मेरा जीवन भर का साथ  
मै आज भी, जाग रहा था 
अपने दिल बसाये 
उनकी,हर एक बात !!

Saturday, March 12, 2011

दिन भर गायब हो जाता था...





एक नन्ही सी दुनिया थी मेरी 
चंचलता और कोमलता ही छाया थी मेरी 
मैं बस चलता रहता था ,
हर पल बस मिर्ची से बाते करता था ,
में तो खुद उससे  डरता था
फिर भी में उसे डराता था ,
और फिर में दिन भर गायब हो जाता  था !

सुबह -२ में आगन में गौरय्यो को दौड़ता था ,
और फिर में बगीचों में भाग जाया करता था 
नन्हे पेंड़ो और सुखी पत्तियों से खेला करता था ,
चिडियों से बाते करने की कोशिश करता था 
फिर ख़ुशी -२ शाम को घर पर आता था 
शाम को सबसे पहले सो जाता था !!

फिर अम्मा मुझे जगाती थी 
कहानिया मुझे सुनाती थी 
और फिर से में सो जाता था ,
और फिर रात को जग कर में तारे गिनता 
चाँद को अपना घर बताता ,
रात को छिप कर सबको डराता 
और फिर में दिन भर गायब हो जाता -२!!!

उसके चले जाने के बाद





इन भीगी पलको में ,गुलाबी अश्क लिए 
बेकरार थी, न जाने किस के लिए 
सो गया था आसमा, चाँद के डूबने के लिए 
वो जागती रही फिर ,एक नयी सुबह होने के लिए !

वो आँखे धुड्ती रही,न जाने क्यूँ 
उसके जाने के बाद ,
हर वक़्त उसे तडपाती रही 
खोये उन  पल की याद ,
वो सोकर भी जागती रही 
हर रात बीत जाने के बाद !!

अब हम आगे क्या बताये ,तुम्हे "बिट्टू " 
हर लफ्ज तो नजर बन गयी थी 
उससे छूट जाने के बाद-2 ,
बदलती रंग की इस दुनिया में 
वो भी बदल गयी थी ,
मुझसे दूर होने के बाद !!!

में वही का ,वही रह गया
उसकी सगाई बीत जाने के बाद 
ये आँखे उसे धुन्धती रही ,फिर से 
न जाने क्यूँ ,उसके चले जाने के बाद -२!!!!

Friday, March 11, 2011

इसी पहर .....





उठती  थी  मेरी दर्द की लहर 
हो गयी थी  जब दोपहरी का पहर,

बस देखता था अपने सपनो को 
टूटते -बिखरते हुए इधर-उधर, 
न जाने कौन सी  घडी थी वो 
जो सब कुछ खोकर में  
पाया था अपने मन में एक घर...वो भी इसी पहर  !

फिर में उठता चलता आसमा को देखता 
शुरुआत होती फिर एक नयी पहर 
न जाने ऐसा क्यों लगता था 
बीत जाएगी सारी जिन्दगी...  इसी पहर !!

फिर में सोचता क्या हो गया मुझे 
न जाने किस खवाब में जीता हूँ इस कदर 
सब कुछ वैसे का वैसा ही था 
बीत जाने के बाद ......इस पहर 

बस हर पल

ऐ मतवाले तू हमें बता दे 
क्यों देता हैं ऐसे जीवन ,
न पाया था हमने कुछ 
ऐसा जो पाया था तुमसे होकर !

अब हर एक पल का रोना हैं 
अब तो बस सपनो में ही जीना हैं 
छोड़कर सारी महफ़िल अब 
बस तुमसे ही सबकुछ कहना हैं , 
बस हर पल खवाबो में रहना हैं !!


Wednesday, March 9, 2011

कल जाने क्या होगा !


  आज नहीं  तो कल क्या होगा 
  पल-पल हम खोएंगे , तो आगे फिर क्या होगा , 
  रहे सो  रहे हे मानव तू 
  जाग जा  अपने जीवन से , 
  न तो कल जाने क्या होगा !

  मिटती हुई तेरी नामो -निशा 
  घटती हुई जीवन की परम्परा 
  खोती हुई अपनी ताल ,
  सोती हुई जीवन की धरा 
  हे मानव तू  जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!
  ये ताप नहीं अभिशाप हैं 
  जीवन के कुकर्मो का पाप हैं ,
  उठ खड़ी हो गयी ,मानव मर्यादा 
  अब तो हो गई हैं हद से ज्यादा ,
  हे मानव जाग जा अंपने  जीवन  से 
   न तो कल जाने क्या होगा !!!

  न जाने क्यों फिर भी हम ,हम कहलाते  हैं 
  और अपनी दंभ सुनाते हैं ,
  पा ली हैं  विजय इस जीवन पे 
  क्योकि हम मानव कहलाते हैं ,
  हे मानव तू जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!!! 
  
   

Tuesday, March 8, 2011

ऐसा जीवन !

 बहते कोमल ,नीर  उपवन में  
 ढूंडते अपने तन-मन को !
 न जाने कौन घडी थी वो
 जो पाया मैंने ऐसा जीवन  !

  एक थी नर तो दूसरी नारी 
  सुखमय जीवन की दुनिया हमारी ,
  पल-पल कल-कल करती जीवन की धारा 
  आते -जाते लोगो की मन को मोहित करती थी !!

  गाते मुस्काते चेहरों की मखमल सी छाया बनती थी 
  सब कुछ पाया था उस पल भर के जीवन में 
  ना जाने कौन घडी थी वो
  जो पाया था मैंने ऐसा जीवन !!! 

एक उपवन में !

  वक़्त -बेवक्त ढूंडता  हूँ ,उस खोये हुए मन को
  जो कभी हुआ करता था ,अपने मन का 
  सब कुछ खोकर पाया मैंने एक मन को 
  जो खोजता था सबको एक उपवन में !


 काली अँधेरी रात में , 
 सुर्ख लाल थी चन्द्रमा की लालिमा 
 एक नयी -नवेली  दुल्हन सी सजी थी वो !!

 न जाने उस वक़्त की क्या फ़रियाद हो 
 हर चाहने वाला वहां से गुजरकर,
 उसकी महक को छूकर ,मन के भाव को  
 दिल की तह तक पंहुचा कर आगे बढता था 
 जरूर कुछ बात थी उस रात में 
 जो मेर जेहन को छूकर गयी थी  !!!

एक दिन डूब जायेंगे इसमें हम सभी !

 ये असमान हैं या जमीं 
मैं छुप कर देखता हूँ, तेरी आँखों की नमी ,
डूबते हुए मन को बचाया ,तूने  कभी -कभी 
लेकिन क्या पता था ! 
एक दिन डूब जायेंगे इसमें हम सभी !

फिर वो आये ,लेकिन पाया उसमे कुछ भी नहीं 
भटकती  राह में ,उड़ाने भरते ,
आते-जाते लोगो से पूछते 
क्या वह मिल जायेगा फिर से कभी !!

न छुपी थी फ़रियाद किसी से 
न छुपी थी दर्दे  तेरी  बयां,
फिर भी लोगो ने नहीं देखा 
हश्र हुआ क्या आगे तेरा !!!

भूख तो दूर ,प्यास की आग न बुझ  सकी 
दूर तो दूर पास-पास कोई न दिख सका ,
क्योकि टूटती हुए मेरी दुनिया को कोई  देख न सका 
तड़पता रहा बस तेरी याद में ,दूर-दूर तलक दुद्ता रहा 
पर तू न मिल सका ,पर तू न मिल सका !!!!