Friday, May 13, 2011

तेरे दर्दे दिल में ,मेरे इश्क कि सजा क्या हैं ,
मेरे चाहत की बुलंदी ऊँची हैं ,पर इन कलामो में मेरे दस्ताने -मोहब्बत कि खता क्या हैं ,
अब तो मै मुफलिसी कि जिन्दगी जीता हूँ ,
क्योकि इन बहारो -चमन में तेरे इश्क का नाशाद बहुत मीठा हैं.!



इजहारे मोहब्बत , तो साकी बन गयी थी ,
मै प्याला बन गया था ,तू शबाब बन गयी थी ,
फ़ैल गयी थी ,इस जहाँ में तेरे मेरे इश्क की दास्ता,
लगता हैं आज फिर से ,किसी को किसी से सच्ची मोहब्बत हो गयी थी !

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