Thursday, March 24, 2011

इन फलक में....



आज अपनी रंगत  खो चुका हैं ,आसमा 
आज जमींदोश  हो गया  हैं  सारा जहां
महकती इन घटाओं  अब न तो वो नशा  हैं 
बहकती डालियों  में अब न तो वो खुमारी !

अब तो सो गया हैं , सारा जहां 
बस अपनी खुद्दारी में ,
बिखर गयी  हैं दुनिया  उनकी 
टूट गए  हैं उनके सपने 
चुभ रही हैं जीवन की हर एक डगर 
लग रहा मैं टूटकर बिखर गया हूँ इधर -उधर !!

आज फिर में न जाने क्या बैठा  था,पिरोने उसे 
जो फिर कभी नहीं हो सकता था ,हमसफ़र !!!

लगी हैं आग इस कदर ,इन फलक में 
जो आज फिर  बुझ -२ कर भी जल रही हैं 
लग रहा आज  हो जाएगा  सब  खाके -सुपुर्द 
क्योकि बस बचा हैं , मेरे जाने में, एक छोटा सा पहर !!!!

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