इन बिखरती छावं में आज
फिर से कोई खुद को बिछाकर लेटा हैं !
फिर से कोई खुद को बिछाकर लेटा हैं !
डूब गया हैं खवाबो के समंदर में
बस वो जाग -२ कर सोता हैं !!
जो कल तक बाते करता था
वो न जाने क्यु खुद से बाते करता हैं !
लगता हैं ,रह गयी ख्वाहिसों के समंदर में आखिरी लब्ज
न जाने कब तक उनके आगोश खुद को छिपा कर बैठा हैं !!
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