Tuesday, April 12, 2011

इन बिखरती छावं में !

इन बिखरती छावं में आज 
फिर से कोई खुद को बिछाकर लेटा हैं !
डूब गया हैं खवाबो  के समंदर में 
बस वो जाग -२ कर सोता हैं !!

जो कल तक बाते करता था 
वो न जाने क्यु खुद से बाते करता हैं !
लगता हैं ,रह गयी ख्वाहिसों के समंदर में आखिरी लब्ज 
न जाने कब तक उनके आगोश खुद को छिपा कर बैठा हैं !!

No comments:

Post a Comment