Tuesday, March 8, 2011

एक उपवन में !

  वक़्त -बेवक्त ढूंडता  हूँ ,उस खोये हुए मन को
  जो कभी हुआ करता था ,अपने मन का 
  सब कुछ खोकर पाया मैंने एक मन को 
  जो खोजता था सबको एक उपवन में !


 काली अँधेरी रात में , 
 सुर्ख लाल थी चन्द्रमा की लालिमा 
 एक नयी -नवेली  दुल्हन सी सजी थी वो !!

 न जाने उस वक़्त की क्या फ़रियाद हो 
 हर चाहने वाला वहां से गुजरकर,
 उसकी महक को छूकर ,मन के भाव को  
 दिल की तह तक पंहुचा कर आगे बढता था 
 जरूर कुछ बात थी उस रात में 
 जो मेर जेहन को छूकर गयी थी  !!!

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