Saturday, April 16, 2011

, मेरी इनायत से !

ये उठता धुँआ हैं , जो थमता नहीं चलता जाता हैं 
दूर जाकर हमसे, आसमा की आगोश में छिप कर बैठ जाता हैं !
वो न जाने क्यूं छिपकर निहारता खुद में हमको ,
जब भी कोई वहां  से गुजर कर आता हैं !

अब तो बस वफाये नज्र को ,ये आँखे तलाशती हैं 
वो कही पे भी हो ,बस उनको सपनो में पाती हैं !
गर दूर हो भी गयी, मेरी इनायत से 
तो रूह भी मेरी तुझे तलाशती हैं !! 
                                    --- बिट्टू 

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