Wednesday, March 9, 2011

कल जाने क्या होगा !


  आज नहीं  तो कल क्या होगा 
  पल-पल हम खोएंगे , तो आगे फिर क्या होगा , 
  रहे सो  रहे हे मानव तू 
  जाग जा  अपने जीवन से , 
  न तो कल जाने क्या होगा !

  मिटती हुई तेरी नामो -निशा 
  घटती हुई जीवन की परम्परा 
  खोती हुई अपनी ताल ,
  सोती हुई जीवन की धरा 
  हे मानव तू  जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!
  ये ताप नहीं अभिशाप हैं 
  जीवन के कुकर्मो का पाप हैं ,
  उठ खड़ी हो गयी ,मानव मर्यादा 
  अब तो हो गई हैं हद से ज्यादा ,
  हे मानव जाग जा अंपने  जीवन  से 
   न तो कल जाने क्या होगा !!!

  न जाने क्यों फिर भी हम ,हम कहलाते  हैं 
  और अपनी दंभ सुनाते हैं ,
  पा ली हैं  विजय इस जीवन पे 
  क्योकि हम मानव कहलाते हैं ,
  हे मानव तू जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!!! 
  
   

No comments:

Post a Comment