आज नहीं तो कल क्या होगा
पल-पल हम खोएंगे , तो आगे फिर क्या होगा ,
रहे सो रहे हे मानव तू
जाग जा अपने जीवन से ,
न तो कल जाने क्या होगा !
मिटती हुई तेरी नामो -निशा
घटती हुई जीवन की परम्परा
खोती हुई अपनी ताल ,
सोती हुई जीवन की धरा
हे मानव तू जाग जा अपने जीवन से
न तो कल जाने क्या होगा !!
ये ताप नहीं अभिशाप हैं
जीवन के कुकर्मो का पाप हैं ,
उठ खड़ी हो गयी ,मानव मर्यादा
अब तो हो गई हैं हद से ज्यादा ,
हे मानव जाग जा अंपने जीवन से
न तो कल जाने क्या होगा !!!
न जाने क्यों फिर भी हम ,हम कहलाते हैं
और अपनी दंभ सुनाते हैं ,
पा ली हैं विजय इस जीवन पे
क्योकि हम मानव कहलाते हैं ,
हे मानव तू जाग जा अपने जीवन से
न तो कल जाने क्या होगा !!!!
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