तू निकल पड़ आज ऐ मतवाले
हो मशाल हाथ में
जुबां पे हो बस इंकलाबी नारे ,
हर गली और कूचे
हर दरो दीवार
आज फिर से दरकने लगे,
हर तरफ बस गुंजायमान
वीर शहीदो के आवाज़े ,
तू सिंचित कर दे अपने लहू से
इस मात्रभूमि की मर्यादा को
जन -जन की आवाज़ बनकर
तू पी जा सारे विष के प्याले ,
तू पग पग पर अपने प्राण बिछा दे
अपने जीवन का अर्पित पुष्प चड़ा दे ,
तू निकल पड़ आज ऐ मतवाले -२ !!
इन्कलाब जिन्दा बाद ...........
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