Friday, April 8, 2011

ऐ मतवाले...

तू निकल पड़ आज  ऐ मतवाले
हो मशाल हाथ में 
जुबां पे हो बस इंकलाबी नारे ,
हर गली और कूचे 
हर दरो दीवार 
आज फिर से दरकने लगे,
हर तरफ बस गुंजायमान 
वीर शहीदो के आवाज़े ,
तू सिंचित कर दे अपने लहू से 
इस मात्रभूमि की मर्यादा को 
जन -जन की आवाज़ बनकर 
तू पी जा सारे विष के प्याले ,
तू पग पग पर अपने प्राण बिछा दे 
अपने जीवन का अर्पित पुष्प चड़ा दे ,
तू निकल पड़ आज ऐ मतवाले -२ !!
इन्कलाब जिन्दा बाद ...........

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