Friday, May 13, 2011

एक कलाम पढ लेते...

आज मै एक फ़रियाद लेकर आया था ,
तकदीर में लिखा था ,बेजुबान बनकर आया था ,
ऐ काशिद हम भी अपनी लब्ज को नाशाद कर देते,
गर तू भेज दे कर्बला ,तेरे दर पर बैठकर एक कलाम पढ लेते !!



चाँद कि आगोश खुद को कोई कल छिपाकर बैठा था,
न जाने क्यु नजरे चुराकर मुझ से कोई कुछ कहता था !
मेरे मोहब्बत का पैगाम तो उनको बहुत पहले पहुच गयी थी ,
क्योकि वह खुद उस चादनी रात में आसमा को बिछाकर लेता था !!

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