
मैं एक बंजारन हूँ
मेरा कोई ठिकाना नहीं
मैं बस ढूंडती
अपने जीवन के रंग
मैं बदलती हूँ
वक़्त के संग अपना रंग
मैं ढूंडती हूँ अपनी सहेलियो
जिनसे संवारता हैं
मेरे गृहस्थ का रंग !
मैं आज न जाने क्यों उदास थी
मेरी बहने आज मेरे खिलाफ थी
मैं उनसे कहती थी
छोड़ दो अपनी प्यारी सहेलियों को
न जाने कुछ मुझे कुछ खतरे की आस थी !!
मैं भटक गयी थी ,अपने धर्म पथ
क्योकि जीवन की सच्चाई मेरे पास थी
टूट कर बिखर गए थे सारे सपने
क्योकि आज जिन्दा होकर भी
मैं मौत के पास थी -२!!!
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