Saturday, March 12, 2011

दिन भर गायब हो जाता था...





एक नन्ही सी दुनिया थी मेरी 
चंचलता और कोमलता ही छाया थी मेरी 
मैं बस चलता रहता था ,
हर पल बस मिर्ची से बाते करता था ,
में तो खुद उससे  डरता था
फिर भी में उसे डराता था ,
और फिर में दिन भर गायब हो जाता  था !

सुबह -२ में आगन में गौरय्यो को दौड़ता था ,
और फिर में बगीचों में भाग जाया करता था 
नन्हे पेंड़ो और सुखी पत्तियों से खेला करता था ,
चिडियों से बाते करने की कोशिश करता था 
फिर ख़ुशी -२ शाम को घर पर आता था 
शाम को सबसे पहले सो जाता था !!

फिर अम्मा मुझे जगाती थी 
कहानिया मुझे सुनाती थी 
और फिर से में सो जाता था ,
और फिर रात को जग कर में तारे गिनता 
चाँद को अपना घर बताता ,
रात को छिप कर सबको डराता 
और फिर में दिन भर गायब हो जाता -२!!!

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