आज अपनी रंगत खो चुका हैं ,आसमा
आज जमींदोश हो गया हैं सारा जहां
महकती इन घटाओं अब न तो वो नशा हैं
बहकती डालियों में अब न तो वो खुमारी !
अब तो सो गया हैं , सारा जहां
बस अपनी खुद्दारी में ,
बिखर गयी हैं दुनिया उनकी
टूट गए हैं उनके सपने
चुभ रही हैं जीवन की हर एक डगर
लग रहा मैं टूटकर बिखर गया हूँ इधर -उधर !!
आज फिर में न जाने क्या बैठा था,पिरोने उसे
जो फिर कभी नहीं हो सकता था ,हमसफ़र !!!
लगी हैं आग इस कदर ,इन फलक में
जो आज फिर बुझ -२ कर भी जल रही हैं
लग रहा आज हो जाएगा सब खाके -सुपुर्द
क्योकि बस बचा हैं , मेरे जाने में, एक छोटा सा पहर !!!!