Thursday, March 24, 2011

इन फलक में....



आज अपनी रंगत  खो चुका हैं ,आसमा 
आज जमींदोश  हो गया  हैं  सारा जहां
महकती इन घटाओं  अब न तो वो नशा  हैं 
बहकती डालियों  में अब न तो वो खुमारी !

अब तो सो गया हैं , सारा जहां 
बस अपनी खुद्दारी में ,
बिखर गयी  हैं दुनिया  उनकी 
टूट गए  हैं उनके सपने 
चुभ रही हैं जीवन की हर एक डगर 
लग रहा मैं टूटकर बिखर गया हूँ इधर -उधर !!

आज फिर में न जाने क्या बैठा  था,पिरोने उसे 
जो फिर कभी नहीं हो सकता था ,हमसफ़र !!!

लगी हैं आग इस कदर ,इन फलक में 
जो आज फिर  बुझ -२ कर भी जल रही हैं 
लग रहा आज  हो जाएगा  सब  खाके -सुपुर्द 
क्योकि बस बचा हैं , मेरे जाने में, एक छोटा सा पहर !!!!

मै एक बंजारन हूँ....





मैं एक बंजारन हूँ 
मेरा कोई ठिकाना नहीं 
मैं बस ढूंडती  
अपने जीवन के रंग 
मैं बदलती हूँ 
वक़्त के संग अपना रंग 
मैं ढूंडती हूँ अपनी सहेलियो 
जिनसे संवारता हैं 
मेरे गृहस्थ  का रंग !

मैं आज न जाने क्यों उदास थी 
मेरी बहने आज मेरे खिलाफ थी 
मैं उनसे  कहती थी 
छोड़ दो अपनी प्यारी सहेलियों  को 
न जाने कुछ मुझे कुछ खतरे की आस थी !!

मैं भटक गयी थी ,अपने धर्म पथ 
क्योकि जीवन की सच्चाई मेरे पास थी 
टूट कर बिखर गए थे सारे सपने 
क्योकि आज जिन्दा होकर भी 
मैं मौत के पास थी -२!!!

हर एक बात ...



आज में फिर निकला था 
उनको छोड़कर 
आज फिर, उन दो आँखों में 
फिर वही रंग था !
एक तो ख़ुशी का और
 दूसरा गम, का था !!
मेरे हाथ,फिर आज 
उनकी चरणों, की धूल 
अपने माथे पर लगाये थे !
और वो  आज फिर
अपनी भीगी पलके लिए, मुस्कुराये थे 
कदम बढ  गए, आज फिर
उनको पाने में
जिसे मैंने वर्षो से सजाये थे !!


आज फिर उनकी आँखे निहारती रही 
मेरे ओझल हो जाने के बाद 
फिर भी वो खड़ी रही 
मुझ से दूर हो जाने के बाद !
मै  बार -२ मुड़कर देखता रहा 
और बस हर पल सोचता रहा 
 बताई उनकी हर एक  बात 
कुछ पल बाद ऐसा लगा
 जैसे छूट गया हो 
मेरा जीवन भर का साथ  
मै आज भी, जाग रहा था 
अपने दिल बसाये 
उनकी,हर एक बात !!

Saturday, March 12, 2011

दिन भर गायब हो जाता था...





एक नन्ही सी दुनिया थी मेरी 
चंचलता और कोमलता ही छाया थी मेरी 
मैं बस चलता रहता था ,
हर पल बस मिर्ची से बाते करता था ,
में तो खुद उससे  डरता था
फिर भी में उसे डराता था ,
और फिर में दिन भर गायब हो जाता  था !

सुबह -२ में आगन में गौरय्यो को दौड़ता था ,
और फिर में बगीचों में भाग जाया करता था 
नन्हे पेंड़ो और सुखी पत्तियों से खेला करता था ,
चिडियों से बाते करने की कोशिश करता था 
फिर ख़ुशी -२ शाम को घर पर आता था 
शाम को सबसे पहले सो जाता था !!

फिर अम्मा मुझे जगाती थी 
कहानिया मुझे सुनाती थी 
और फिर से में सो जाता था ,
और फिर रात को जग कर में तारे गिनता 
चाँद को अपना घर बताता ,
रात को छिप कर सबको डराता 
और फिर में दिन भर गायब हो जाता -२!!!

उसके चले जाने के बाद





इन भीगी पलको में ,गुलाबी अश्क लिए 
बेकरार थी, न जाने किस के लिए 
सो गया था आसमा, चाँद के डूबने के लिए 
वो जागती रही फिर ,एक नयी सुबह होने के लिए !

वो आँखे धुड्ती रही,न जाने क्यूँ 
उसके जाने के बाद ,
हर वक़्त उसे तडपाती रही 
खोये उन  पल की याद ,
वो सोकर भी जागती रही 
हर रात बीत जाने के बाद !!

अब हम आगे क्या बताये ,तुम्हे "बिट्टू " 
हर लफ्ज तो नजर बन गयी थी 
उससे छूट जाने के बाद-2 ,
बदलती रंग की इस दुनिया में 
वो भी बदल गयी थी ,
मुझसे दूर होने के बाद !!!

में वही का ,वही रह गया
उसकी सगाई बीत जाने के बाद 
ये आँखे उसे धुन्धती रही ,फिर से 
न जाने क्यूँ ,उसके चले जाने के बाद -२!!!!

Friday, March 11, 2011

इसी पहर .....





उठती  थी  मेरी दर्द की लहर 
हो गयी थी  जब दोपहरी का पहर,

बस देखता था अपने सपनो को 
टूटते -बिखरते हुए इधर-उधर, 
न जाने कौन सी  घडी थी वो 
जो सब कुछ खोकर में  
पाया था अपने मन में एक घर...वो भी इसी पहर  !

फिर में उठता चलता आसमा को देखता 
शुरुआत होती फिर एक नयी पहर 
न जाने ऐसा क्यों लगता था 
बीत जाएगी सारी जिन्दगी...  इसी पहर !!

फिर में सोचता क्या हो गया मुझे 
न जाने किस खवाब में जीता हूँ इस कदर 
सब कुछ वैसे का वैसा ही था 
बीत जाने के बाद ......इस पहर 

बस हर पल

ऐ मतवाले तू हमें बता दे 
क्यों देता हैं ऐसे जीवन ,
न पाया था हमने कुछ 
ऐसा जो पाया था तुमसे होकर !

अब हर एक पल का रोना हैं 
अब तो बस सपनो में ही जीना हैं 
छोड़कर सारी महफ़िल अब 
बस तुमसे ही सबकुछ कहना हैं , 
बस हर पल खवाबो में रहना हैं !!


Wednesday, March 9, 2011

कल जाने क्या होगा !


  आज नहीं  तो कल क्या होगा 
  पल-पल हम खोएंगे , तो आगे फिर क्या होगा , 
  रहे सो  रहे हे मानव तू 
  जाग जा  अपने जीवन से , 
  न तो कल जाने क्या होगा !

  मिटती हुई तेरी नामो -निशा 
  घटती हुई जीवन की परम्परा 
  खोती हुई अपनी ताल ,
  सोती हुई जीवन की धरा 
  हे मानव तू  जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!
  ये ताप नहीं अभिशाप हैं 
  जीवन के कुकर्मो का पाप हैं ,
  उठ खड़ी हो गयी ,मानव मर्यादा 
  अब तो हो गई हैं हद से ज्यादा ,
  हे मानव जाग जा अंपने  जीवन  से 
   न तो कल जाने क्या होगा !!!

  न जाने क्यों फिर भी हम ,हम कहलाते  हैं 
  और अपनी दंभ सुनाते हैं ,
  पा ली हैं  विजय इस जीवन पे 
  क्योकि हम मानव कहलाते हैं ,
  हे मानव तू जाग जा अपने जीवन से 
  न तो कल जाने क्या होगा !!!! 
  
   

Tuesday, March 8, 2011

ऐसा जीवन !

 बहते कोमल ,नीर  उपवन में  
 ढूंडते अपने तन-मन को !
 न जाने कौन घडी थी वो
 जो पाया मैंने ऐसा जीवन  !

  एक थी नर तो दूसरी नारी 
  सुखमय जीवन की दुनिया हमारी ,
  पल-पल कल-कल करती जीवन की धारा 
  आते -जाते लोगो की मन को मोहित करती थी !!

  गाते मुस्काते चेहरों की मखमल सी छाया बनती थी 
  सब कुछ पाया था उस पल भर के जीवन में 
  ना जाने कौन घडी थी वो
  जो पाया था मैंने ऐसा जीवन !!! 

एक उपवन में !

  वक़्त -बेवक्त ढूंडता  हूँ ,उस खोये हुए मन को
  जो कभी हुआ करता था ,अपने मन का 
  सब कुछ खोकर पाया मैंने एक मन को 
  जो खोजता था सबको एक उपवन में !


 काली अँधेरी रात में , 
 सुर्ख लाल थी चन्द्रमा की लालिमा 
 एक नयी -नवेली  दुल्हन सी सजी थी वो !!

 न जाने उस वक़्त की क्या फ़रियाद हो 
 हर चाहने वाला वहां से गुजरकर,
 उसकी महक को छूकर ,मन के भाव को  
 दिल की तह तक पंहुचा कर आगे बढता था 
 जरूर कुछ बात थी उस रात में 
 जो मेर जेहन को छूकर गयी थी  !!!

एक दिन डूब जायेंगे इसमें हम सभी !

 ये असमान हैं या जमीं 
मैं छुप कर देखता हूँ, तेरी आँखों की नमी ,
डूबते हुए मन को बचाया ,तूने  कभी -कभी 
लेकिन क्या पता था ! 
एक दिन डूब जायेंगे इसमें हम सभी !

फिर वो आये ,लेकिन पाया उसमे कुछ भी नहीं 
भटकती  राह में ,उड़ाने भरते ,
आते-जाते लोगो से पूछते 
क्या वह मिल जायेगा फिर से कभी !!

न छुपी थी फ़रियाद किसी से 
न छुपी थी दर्दे  तेरी  बयां,
फिर भी लोगो ने नहीं देखा 
हश्र हुआ क्या आगे तेरा !!!

भूख तो दूर ,प्यास की आग न बुझ  सकी 
दूर तो दूर पास-पास कोई न दिख सका ,
क्योकि टूटती हुए मेरी दुनिया को कोई  देख न सका 
तड़पता रहा बस तेरी याद में ,दूर-दूर तलक दुद्ता रहा 
पर तू न मिल सका ,पर तू न मिल सका !!!!