पल-पल गुजरता हुआ, कल ,
इन यादो का, हमारा -तुम्हारा, मीठा सफ़र !
हम कभी दूर से देख कर, अपनी निगाहों में सकूं भर लेते थे ,
आज इतना करीब होकर भी, न जाने क्यूँ इन आँखों को अश्क से भर लेते हैं !!
हमारी -तुम्हारी मोहब्बत कि दास्ताँ ,न कभी हमारी कम थी ,न कभी तुम्हारी ,
पर न जाने क्यूँ एक ख्याल सा आता है ,तुम से दूर होने का एक डर सा सताता हैं !
फिर भी हमें फख्र हैं हमारी -तुम्हारी मोहब्बत पे ,
क्योकि इसकी इबारत मौला ने, खुद लिखी हैं, अपनी कलम से !!
ये सच हैं बिट्टू, जो कल थी वो आज और वो मरते दम तक रहेगी ,
हमारी -तुम्हारी मोहब्बत कि दास्ताँ हमेशा अमर रहेगी !!!