Monday, April 18, 2011

तेरे नाम का पत्थर !

शामें मोहब्बत, की पैगाम लेकर आया था ,
हर वली पर ,बस तेरे मौला का नाम लिख कर आया था !
जो हुआ न था ,उससे कभी , वो फिर भी ,अपनी खुदी का कलाम  लिख कर आया था ,
और उस  हसीने  शाम  को , तेरे नाम करने  आया था !!

हर पल , हर खयालो  ,में पहरा रहता था, तुम्हारी मोहब्बत का
न जाने  कौन  फिर से  , तेरे मयस्सर  का  नाम लेकर आया था ,
भुला  दिया  हैं  उनको , जो, तेरा  नाम लेकर जीते  हैं 
आज  तेरे नाम का पत्थर , दिल  से  उछाल  कर आया था !!
                                                                      

Sunday, April 17, 2011

चाँद बना दिया !

वक़्त की इनायत ने मुझको पागल बना दिया ,
मैं ढुंढता रहा जिनको बुझता चिराग लिए !
उसने खुद ही मुझको रोशनी का सामान बना दिया ,
ख़ाक हो गए अँधेरे ,उनके ख्वाहिशो की गर्दिश में
---वो आज मुझको फिर से उजाली रात का चाँद बना दिया -२!!

कसूर मेरा कितना हैं ,तेरा कितना हैं !

इस सुबह में, मेरे हिस्से का सवेरा कितना हैं
चराग बुझा कर देख लो, अँधेरा कितना हैं
तेरे नाम पर, दावे बहुत लोग करते हैं,
दिल कहता हैं , आजमाकर देख लो तू मेरा कितना हैं !

उस डेरे से उड़ा था ,इस डेरे पर हैं ,उस डेरे पर बैठेगा
इस परिंदे का न जाने कितना डेरा हैं ,
भागता हूँ रातो -दिन ,पर अब तक, भाग नहीं पाया ,
कोई बतलादे उनकी यादो का घेरा कितना हैं !!

गुनाह हुआ हैं बिट्टू मोहब्बत में ,तुझसे भी ,मुझसे भी
न जाने इस गुनाह में ,कसूर मेरा कितना हैं ,तेरा कितना हैं !!

Saturday, April 16, 2011

, मेरी इनायत से !

ये उठता धुँआ हैं , जो थमता नहीं चलता जाता हैं 
दूर जाकर हमसे, आसमा की आगोश में छिप कर बैठ जाता हैं !
वो न जाने क्यूं छिपकर निहारता खुद में हमको ,
जब भी कोई वहां  से गुजर कर आता हैं !

अब तो बस वफाये नज्र को ,ये आँखे तलाशती हैं 
वो कही पे भी हो ,बस उनको सपनो में पाती हैं !
गर दूर हो भी गयी, मेरी इनायत से 
तो रूह भी मेरी तुझे तलाशती हैं !! 
                                    --- बिट्टू 

Tuesday, April 12, 2011

इन बिखरती छावं में !

इन बिखरती छावं में आज 
फिर से कोई खुद को बिछाकर लेटा हैं !
डूब गया हैं खवाबो  के समंदर में 
बस वो जाग -२ कर सोता हैं !!

जो कल तक बाते करता था 
वो न जाने क्यु खुद से बाते करता हैं !
लगता हैं ,रह गयी ख्वाहिसों के समंदर में आखिरी लब्ज 
न जाने कब तक उनके आगोश खुद को छिपा कर बैठा हैं !!

रूमानियत की नज्र करते.!

कौन हैं "वो"जो मुझको हर खवाब में  नजर आता हैं
जो पास होकर भी  मेरी तन्हयियो को छूकर चला जाता हैं !
हम आज जिन्दा होकर भी तेरी रुखसत की परवाह नहीं करते 
गर अपनी कब्र में भी होते अकीदा ,तो भी हम तेरे सब्ज की रूमानियत की नज्र करते.!! 

अजीबो गरीब हैं तेरे चाहत की दास्ताँ 
जब हम करीब होते तो आप दूर होते हो !
मेरी ""छोटी" की हर रुखसत को माफ़ करना मेरे !!मौला
वो हमसे  दूर होते भी हो, क्यों न " पर उनकी तस्वीर को आँखों में उतार  कर जी लेते हैं.!!

Monday, April 11, 2011

किसी गैरत को !


इस मंजिल तक पहुचने का एक ही रास्ता हैं 
और जिस तक जाना हैं उससे पहले का कोई वास्ता हैं, 
आज रहबर की रहनुमाई मुझ पर महँगी पड़ेगी 
क्योकि आज फिर से हर जर्रे पर उनके नाम का कांटा बिछा हैं!
  
अगर चुभ गया होता किसी गैरत को 
तो वो भी अब तक उस दर्द का प्यासा हो चूका होता ,
ऐ मेरे मौला ! दुआ करना उनके खुदा से 
की आज उस दर्द का असर भी  मुझ तक पहुँच गया होता !!

Friday, April 8, 2011

ऐ मतवाले...

तू निकल पड़ आज  ऐ मतवाले
हो मशाल हाथ में 
जुबां पे हो बस इंकलाबी नारे ,
हर गली और कूचे 
हर दरो दीवार 
आज फिर से दरकने लगे,
हर तरफ बस गुंजायमान 
वीर शहीदो के आवाज़े ,
तू सिंचित कर दे अपने लहू से 
इस मात्रभूमि की मर्यादा को 
जन -जन की आवाज़ बनकर 
तू पी जा सारे विष के प्याले ,
तू पग पग पर अपने प्राण बिछा दे 
अपने जीवन का अर्पित पुष्प चड़ा दे ,
तू निकल पड़ आज ऐ मतवाले -२ !!
इन्कलाब जिन्दा बाद ...........

Wednesday, April 6, 2011


इस चेहरों की दुनिया में 
यूँ  तो कई चेहरे हैं 
पर एक तुम्हरा चेहरा  हैं  
जिसके आगे हर चेहरे का चेहरा उतरा हैं !

जब से मेरे चेहरे ने तेरे चेहरे को देखा हैं 
मेरा चेहरा तेरे चेहरे पर बिखरा बिखरा हैं
तेरा चेहरा करोडो  में एक चेहरा हैं 
जिसको तलाश रहा मेरा चेहरा हैं 
अब बस वो तेरा चेहरा ही चेहरा हैं !!